महाजनपद
प्रारंम्भिक भारतीय इतिहास में छठी शताब्दी ई०पू० में भारत में कोई एक सार्वभौम सत्ता नहीं थी और सम्पूर्ण राष्ट्र अनेक जनपदों में विभक्त था। इस काल मे उत्तरी भारत में लोहे का व्यापक उपयोग किया जाने लगा था, जिसके कृषि का व्यवस्थित विकास हुआ, जिसके परिणामस्वरूप सिन्धु घाटी की सभ्यता के अंत के बाद प्राचीन भारत फिर से बड़े शहरों का उदय हुआ, जिसे द्वितीय शहरीकरण कहा जाता है और इस तरह से महाजनपदों का उदय हुआ।
यह काल प्राय: प्रारंम्भिक राज्यों, लोहे के बढ़ते प्रयोग और सिक्कों के विकास के के लिए जाना जाता है। ऋग्वैदिक विवरणों से ज्ञात होता है कि किसी एक पूर्वज से उत्पन्न विभिन्न कुटुम्बों के समूह को जन कहते थे और इस प्रकार सभी आर्य अनेक जनों में विभक्त थे। वैदिक संहिताओं में कहीं पर भी जनपद शब्द का प्रयोग नहीं हुआ है। अतः विद्वानों का अनुमान है कि प्रारम्भ में ये जन खानाबदोश थे और एक स्थान से दूसरे स्थान पर घूमा करते थे किन्तु ब्राह्मण-ग्रन्थों में जनपद शब्द का प्रयोग मिलता है. अतः ऐसा प्रतीत होता है कि ब्राह्मण-काल तक आते-आते जनों ने अपने-अपने स्थायी राज्य स्थापित कर लिये थे और जो जन जिस प्रदेश में स्थायी रूप से रहने लगे थे, वही उनका जनपद कहलाने लगा था। प्रत्येक जनपद में बहुत से ग्राम और नगर होते थे। धीरे-धीरे ये छोटे-छोटे जनपद (राज्य) आपस में जुड़ने लगे और इस प्रकार देश में महाजनपदों का उदय हुआ।
इसी समय में बौद्ध और जैन सहित अनेक दार्शनिक विचारधाराओं का विकास हुआ। अधिकांशतः महाजनपदों पर राजा का ही शासन रहता था परन्तु गण और संघ नाम से प्रसिद्ध राज्यों में लोगों का समूह शासन करता था, इस समूह का हर व्यक्ति राजा कहलाता था। भगवान महावीर और भगवान बुद्ध इन्हीं गणों से संबन्धित थे। वज्जि संघ की ही तरह कुछ राज्यों में ज़मीन सहित आर्थिक स्रोतों पर राजा और गण सामूहिक नियंत्रण रखते थे। स्रोतों की कमी के कारण इन राज्यों के इतिहास लिखे नहीं जा सके परन्तु ऐसे राज्य सम्भवतः एक हज़ार साल तक बने रहे थे।
बौद्ध और जैन धर्म के प्रारंम्भिक ग्रंथों में महाजनपद नाम के सोलह राज्यों का विवरण मिलता है। महाजनपदों के नामों की सूची इन ग्रंथों में समान नहीं है परन्तु वज्जि, मगध, कोशल, कुरु, पांचाल, गांधार और अवन्ति जैसे नाम अक्सर मिलते हैं। इससे यह ज्ञात होता है कि ये महाजनपद महत्त्वपूर्ण महाजनपदों के रूप में जाने जाते होंगे।
षोडश महाजनपद
बौद्ध ग्रन्थ, अंगुत्तरनिकाय और जैन- ग्रन्थ, भगवतीसूत्र में वर्णित सोलह महाजनपदों की सूची इस प्रकार है-
ग्रन्थ | 1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 |
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अंगुत्तरनिकाय | अंग | मगध | काशी | कोशल | वज्जि | मल्ल | चेदि | वत्स | कुरू | पांचाल | मत्स्य | शूरसेन | अस्सक | अवन्ति | गांधार | कम्बोज |
भगवतीसूत्र | अंग | बंग | मगह | मलय | मालव | अच्छ | बच्छ | कच्छ | पाच | लाभ | वज्जि | मोलि | काशी | कोशल | अवाह | समुत्तर |
इन दोनों सूचियों में छः जनपदों अंग, मगध (मगह), वत्स (वच्छ), वज्जि, काशी और कोशल के नाम समान हैं तथा जैन-सूची के मालव और मोलि को बौद्ध-सूची के क्रमशः अवन्ति और मल्ल से पहचाना जा सकता है। रायचौधरी के अनुसार भगवतीसूत्र की सूची अंगुत्तरनिकाय के बाद की है। अतः यहाँ अंगुत्तरनिकाय की सूची को ही प्रामाणिक माना गया है।