प्राचीन भारत का इतिहास: Difference between revisions

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बौद्ध-धर्म से संबंधित ग्रन्थ पालि तथा संस्कृत दो भाषाओं में मिलते है। इनमें प्राचीनतम तथा सर्वाधिक महत्वपूर्ण हैं: पालि भाषा में रचित त्रिपिटक । त्रिपिटक की रचना ई०पू० की पांचवीं से पहली शती के बीच हुई बतायी जाती है। यह तीन पिटक है सुत्तपिटक, विनयपिटक तथा अभिधम्मपिटक सुत्तपिटक में गौतम बुद्ध के धार्मिक उपदेशों का संग्रह है। इसमें पांच निकाय हैं दीघनिकाय, मज्झिमनिकाय, संयुक्तनिकाय, अंगुत्तरनिकाय तथा खुद्दकनिकाय विनयपिटक में बौद्ध-संघ से 1 संबंधित विधि-विधानों का संग्रह है इसके भी तीन खण्ड हैं- सुत्तविभंग, खंदक और परिवार । अभिधम्मपिटक में गौतमबुद्ध के धार्मिक सिद्धान्तों को प्रश्नोत्तर-शैली में विवेचित किया गया है। इसमें कथावत्थु धम्मसंगणि, विभंग, धातुकथा, पुग्गलपंजति आदि ग्रन्थ आते हैं। पालि भाषा में रचित अन्य बौद्ध-ग्रन्थों को अनुपिटक कहा जाता है। अनुपिटकों में प्राचीन भारतीय इतिहास-लेखन की दृष्टि से मिलिन्दपन्हो, दीपवंश तथा महावंश का नाम महत्वपूर्ण है तथा संस्कृत बौद्ध-ग्रन्थों में बुद्धचरित, ललितविस्तर, दिव्यावदान, महावस्तु सौरदानन्द आदि उल्लेखनीय हैं।
बौद्ध-धर्म से संबंधित ग्रन्थ पालि तथा संस्कृत दो भाषाओं में मिलते है। इनमें प्राचीनतम तथा सर्वाधिक महत्वपूर्ण हैं: पालि भाषा में रचित त्रिपिटक । त्रिपिटक की रचना ई०पू० की पांचवीं से पहली शती के बीच हुई बतायी जाती है। यह तीन पिटक है सुत्तपिटक, विनयपिटक तथा अभिधम्मपिटक सुत्तपिटक में गौतम बुद्ध के धार्मिक उपदेशों का संग्रह है। इसमें पांच निकाय हैं दीघनिकाय, मज्झिमनिकाय, संयुक्तनिकाय, अंगुत्तरनिकाय तथा खुद्दकनिकाय विनयपिटक में बौद्ध-संघ से 1 संबंधित विधि-विधानों का संग्रह है इसके भी तीन खण्ड हैं- सुत्तविभंग, खंदक और परिवार । अभिधम्मपिटक में गौतमबुद्ध के धार्मिक सिद्धान्तों को प्रश्नोत्तर-शैली में विवेचित किया गया है। इसमें कथावत्थु धम्मसंगणि, विभंग, धातुकथा, पुग्गलपंजति आदि ग्रन्थ आते हैं। पालि भाषा में रचित अन्य बौद्ध-ग्रन्थों को अनुपिटक कहा जाता है। अनुपिटकों में प्राचीन भारतीय इतिहास-लेखन की दृष्टि से मिलिन्दपन्हो, दीपवंश तथा महावंश का नाम महत्वपूर्ण है तथा संस्कृत बौद्ध-ग्रन्थों में बुद्धचरित, ललितविस्तर, दिव्यावदान, महावस्तु सौरदानन्द आदि उल्लेखनीय हैं।


====जैन धर्म से संबंधित ग्रंथ====
===जैन धर्म से संबंधित ग्रंथ===
जैन-धर्म से सम्बन्धित ग्रन्थ मुख्यतः दो प्रकार के हैं- पुराण तथा आगम। जैन पुराणों को प्रायः चरित भी कहा जाता है। इनमें पद्मपुराण, उत्तरपुराण, आदिपुराण, महापुराण महावीरचरित, आदिनाथचरित आदि का नाम प्राचीन भारतीय इतिहास के अययन की स्रोत सामग्री के रूप में उल्लेखनीय है। ये पुराण (चरित) प्राकृत, संस्कृत तथा अपभ्रंश भाषाओं में हैं। जैन आगमों के अन्तर्गत प्रायः बारह अंगों, बारह उपांगों, दस प्रकीर्णको छः छेदसूत्रों एक नन्दिसूत्र, एक अनुयोगद्वार और चार मूलसूत्रों की गणना की जाती है। इनमें आचरंगसुत्त, सूयगदंगसुत्त, भगवतीसुत्त आदि का नाम महत्वपूर्ण है। इन जैन पुराणों तथा आगमों के अतिरिक्त इन पर लिखी गयी नेमिचन्द्रसूरि, हरिभद्रसूरि आदि जैन विद्वानों की टीकाएँ तथा हरिभद्रचरित, समराइच्चकहा, धूर्ताख्यान तथा कुवलयमाला नामक जैन-ग्रन्थ भी प्राचीन भारतीय इतिहास एवं संस्कृति पर पर्याप्त प्रकाश डालते हैं।
जैन-धर्म से सम्बन्धित ग्रन्थ मुख्यतः दो प्रकार के हैं- पुराण तथा आगम। जैन पुराणों को प्रायः चरित भी कहा जाता है। इनमें पद्मपुराण, उत्तरपुराण, आदिपुराण, महापुराण महावीरचरित, आदिनाथचरित आदि का नाम प्राचीन भारतीय इतिहास के अययन की स्रोत सामग्री के रूप में उल्लेखनीय है। ये पुराण (चरित) प्राकृत, संस्कृत तथा अपभ्रंश भाषाओं में हैं। जैन आगमों के अन्तर्गत प्रायः बारह अंगों, बारह उपांगों, दस प्रकीर्णको छः छेदसूत्रों एक नन्दिसूत्र, एक अनुयोगद्वार और चार मूलसूत्रों की गणना की जाती है। इनमें आचरंगसुत्त, सूयगदंगसुत्त, भगवतीसुत्त आदि का नाम महत्वपूर्ण है। इन जैन पुराणों तथा आगमों के अतिरिक्त इन पर लिखी गयी नेमिचन्द्रसूरि, हरिभद्रसूरि आदि जैन विद्वानों की टीकाएँ तथा हरिभद्रचरित, समराइच्चकहा, धूर्ताख्यान तथा कुवलयमाला नामक जैन-ग्रन्थ भी प्राचीन भारतीय इतिहास एवं संस्कृति पर पर्याप्त प्रकाश डालते हैं।