2,515
edits
mNo edit summary |
mNo edit summary |
||
Line 49: | Line 49: | ||
====वेदांग==== | ====वेदांग==== | ||
वेदांगों में वैदिक साहित्य के गूढ़ अंशों को सरल रूप में समझाया गया है। | वेदांगों में वैदिक साहित्य के गूढ़ अंशों को सरल रूप में समझाया गया है। इनकी कुल संख्या 6 है: | ||
'''शिक्षा''' : शिक्षा में वैदिक मंत्रों का सही उच्चारण बताया गया है। | |||
'''कल्प''' : कल्प सूत्रों में वैदिक कर्मों की मीमांसा है। इनकी संख्या चार है- श्रौतसूत्र गृह्यसूत्र, धर्मसूत्र तथा शुल्वसूत्र श्रीतसूत्रों में यज्ञ सम्बन्धी, गृह्यसूत्रों में दैनिक कार्यों से सम्बन्धित, धर्मसूत्रों में धर्म, समाज, एवं राजनीति से सम्बन्धित तथा शुल्वसूत्रों में यज्ञ वेदी आदि के निर्माण से सम्बन्धित सूत्रों का संकलन है। इनकी रचना आठवीं शताब्दी ई०पू० के आस-पास मानी जाती है। | |||
'''निरूक्त''' : निरूक्त में वैदिक शब्दों की व्युत्पत्ति एवं स्वरूप का विवेचन है। यास्क तेरहवें निरूक्तकार थे, जो पाणिनि से पहले हुए थे। | |||
'''व्याकरण''' : व्याकरण के अन्तर्गत भाषा से सम्बंधित नियम आते हैं। प्राचीन भारतीय व्याकरणाचार्यों में पाणिनि, कात्यायन एवं पतंजलि का नाम प्रमुख है। पाणिनि की अष्टाध्यायी व्याकरण का एक अनमोल ग्रंथ है। इसका रचना-काल छठी श० ई०पू० माना जाता है। इसमें कुल 18 अध्याय तथा 3863 सूत्र है। इस ग्रंथ से केवल व्याकरण का ही नहीं अपितु मौर्य-पूर्व तथा मौर्यकालीन भारत की राजनैतिक, सामाजिक, धार्मिक तथा आर्थिक स्थिति का भी ज्ञान होता है। व्याकरणाचार्यों में पाणिनि के बाद कात्यायन का नाम उल्लेखनीय है। इन्होंने व्याकरण-सम्बन्धी जो कमियां अष्टाध्यायी में रह गई थीं उन्हें वार्तिक लिखकर दूर किया और दूसरी श० ई०पू० में पतंजलि ने पाणिनि की अष्टाध्यायी तथा कात्यायन के वार्तिकों की व्याख्या करते हुए एक अन्य व्याकरण-ग्रन्थ महाभाष्य की रचना की। यह ग्रन्थ संस्कृत व्याकरण का सर्वाधिक प्रामाणिक ग्रन्थ है। अष्टाध्यायी के समान इससे भी व्याकरण के साथ-साथ तत्कालीन भारत की राजनैतिक, सामाजिक, धार्मिक तथा आर्थिक स्थिति का ज्ञान होता है। पुष्यमित्र शुंग के काल में भारत पर हुए यवन- आक्रमण का ज्ञान महाभाष्य से ही होता है। | |||
'''छंद''' : छंद में आचार्य पिंगल का छंद - शास्त्र प्रमुख है। | |||
'''ज्योतिष''' : ज्योतिष (गणित) में ब्रह्माण्ड, सौर मण्डल आदि का वर्णन है। प्राचीन ज्योतिषाचार्यो में लगध मुनि, आर्यभट्ट, वराह मिहिर आदि का नाम प्रमुख है। | |||
उपवेद | |||
उपवेद चार हैं - आयुर्वेद, धनुर्वेद, गान्धर्ववेद तथा अर्थशास्त्र और इनमें भी अर्थशास्त्र की नीतिशास्त्र, शिल्पशास्त्र चतुष्षष्टिकलाशास्त्र, भौतिकशास्त्र आदि अनेक शाखाएँ हैं। इन सभी शाखाओं और उपशाखाओं में प्राचीन भारतीय ज्ञान का महासागर है, जो तत्कालीन राजनैतिक, सामाजिक, धार्मिक एवं सांस्कृतिक इतिहास के ज्ञान में हमारी सहायता करता है। | |||
छटी श० ई०पू० से तीसरी श० ई०पू० के मध्य गौतम, कणाद, कपिल, पतंजलि, जैमिनि तथा बादरायण जैसे आचार्यों ने क्रमशः न्याय, वैशेषिक, सांख्य योग, पूर्वमीमांसा तथा उत्तरमीमांसा नामक छः दर्शन-शास्त्रों की रचना की थी। | |||
स्मृति ग्रन्थ | |||
इन्हें धर्मशास्त्र भी कहा जाता है। इनमें मनुस्मृति तथा याज्ञवल्क्यस्मृति सर्वाधिक महत्वपूर्ण हैं। इनकी रचना दूसरी श० ई०पू० से लेकर दूसरी श० ई० के मध्य की गई थी। इनके अतिरिक्त अन्य स्मृति-ग्रन्थ हैं - विष्णुस्मृति, नारदस्मृति, पराशरस्मृति आदि, जिनका रचना-काल चौथी से छठी श० ई० के मध्य माना जाता है। वर्तमान | |||
**भारतीय ग्रन्थ | **भारतीय ग्रन्थ |