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==साहित्यिक साक्ष्य == | ==साहित्यिक साक्ष्य == | ||
भारतीय समाज में धर्म का स्थान सर्वोपरि है। यहाँ समस्त सामाजिक एवं. नैतिक मूल्यों का निर्धारण धर्म के आधार पर किया जाता है। अतः प्राचीन भारतीय ग्रन्थों को भी धार्मिक आधार पर तीन वर्गों में विभाजित किया गया है। ब्राह्मण-ग्रन्थ, बौद्ध-ग्रन्थ, जैन-ग्रन्थ । इनके अतिरिक्त कुछ अन्य समसामयिक ग्रन्थ भी हैं, जो प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से भारतीय इतिहास पर प्रकाश डालते हैं। इस प्रकार भारतीय ग्रन्थों के पुनः चार वर्ग निर्धारित होते हैं: | |||
# ब्राह्मण-धर्म से संबंधित ग्रंथ, | |||
# बौद्ध-धर्म से संबंधित ग्रंथ, | |||
# जैन-धर्म से संबंधित ग्रंथ तथा | |||
# समसामयिक ऐतिहासिक ग्रंथ । | |||
===ब्राह्मण-धर्म से संबंधित ग्रंथ=== | |||
====वेद==== | |||
विश्व के प्राचीनतम साहित्य में वेदों का स्थान सर्वोपरि है। ये वेद चार हैं. ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद तथा अथर्ववेद। इन्हें संहिता भी कहा जाता है। रचना-काल के आधार पर इन्हें दो वर्गों में बांटा गया है। पहले वर्ग में केवल ऋग्वेद है। इसका रचना-काल 1,500 ई०पू० से 1,000 ई०पू० तक माना जाता है तथा दूसरा वर्ग है उत्तर वैदिक साहित्य का। इसमें सामवेद, यजुर्वेद तथा अथर्ववेद आते हैं। इनका रचना-काल 1000 ई०पू० से 500 ई०पू० के मध्य माना जाता है। ऋग्वेद में दस मण्डल तथा 1028 सूक्त है। इसके कुछ मंत्रों में आर्यों के विस्तार तथा दाशराज्ञ युद्ध का उल्लेख मिलता है जिसमें राजा सुदास के नेतृत्व में भरत जनों ने दस राजाओं के एक संघ को पराजित किया था। सामवेद गायन-शैली में है। भारतीय संगीत की उत्पत्ति सामवेद से ही मानी जाती है। यजुर्वेद में यज्ञ-सम्बन्धी विधि-विधानों का उल्लेख है। इसके दो भाग है-कृष्ण यजुर्वेद तथा शुक्ल यजुर्वेद । कृष्ण यजुर्वेद में चार शाखाएँ हैं, जिन्हें काठकसंहिता, कपिष्ठलसंहिता, मैत्रायणीसंहिता तथा तैत्तरीयसंहिता कहा जाता है। पांचवी शाखा है-वाजसनेयीसंहिता, जो शुक्ल यजुर्वेद में रखी जाती है। सामवेद तथा यजुर्वेद से तत्कालीन सामाजिक तथा धार्मिक जीवन पर प्रकाश पड़ता है। अथर्ववेद में 20 काण्ड तथा 731 सूक्त हैं। इसमें ब्रह्मज्ञान और धर्म के साथ-साथ जादू-टोना, औषधि-प्रयोग, धनुर्विद्या आदि विभिन्न विषयों का विवेचन है। अथर्ववेद के मंत्रों में आर्य एवं अनार्य संस्कृतियों का मिला-जुला रूप दिखायी देता है, जिससे प्रतीत होता है कि इस समय तक आर्यों एवं अनार्यों में सामंजस्य स्थापित हो गया था और वे अपनी-अपनी जीवन-शैली से एक दूसरे को प्रभावित करने लगे थे। | |||
====ब्राह्मण==== | |||
वैदिक संहिताओं (चारों वेदों) पर लिखी गई गद्यमय टीकाओं को ब्राह्मण कहा जाता है जैसे ऐतरेय ब्राह्मण तथा कौषीतकिब्राह्मण में ऋग्वेद के मंत्रों पर शतपथब्राह्मण (इसे वाजसनेयब्राह्मण भी कहा जाता है) में यजुर्वेद के मंत्रों पर पंचविशब्राह्मण (इसे ताण्ड्यब्राह्मण भी कहा जाता है) में सामवेद के मंत्रों पर तथा गोपथब्राह्मण में अथर्ववेद के मंत्रों पर टीकाएं लिखी गयी हैं। इन ब्राह्मण-ग्रंथों में तत्कालीन सामाजिक तथा धार्मिक जीवन के साथ-साथ विभिन्न ऐतिहासिक राजवंशों का परिचय भी मिलता है। | |||
====आरण्यक==== | |||
प्राचीन भारतीय दर्शन का आरम्भिक रूप आरण्यक ग्रंथों में निहित है। इनमें प्रमुख हैं- ऐतरेय आरण्यक, शांखायन आरण्यक, तैत्तरीय आरण्यक, मैत्रायणी आरण्यक. वृहदारण्यक, तलवकार आरण्यक आदि । | |||
====उपनिषद==== | |||
भारतीय दर्शन का विशद् विवेचन उपनिषदों की मूल विषय-वस्तु है। इनमें आत्मा, परमात्मा, ब्रह्म, जीव, सृष्टि आदि की व्याख्या की गयी है। इनकी संख्या 108 है, जिनमें वृहदारण्यक, छान्दोग्य, केन, ईश, कठ, मुण्डक आदि प्रमुख हैं। इनकी रचना 800 ई०पू० से 500 ई०पू० के बीच हुई मानी जाती है। इनके अध्ययन से राजा परीक्षित से लेकर बिम्बसार तक के इतिहास के ज्ञान में सहायता मिलती है। | |||
====वेदांग==== | |||
वेदांगों में वैदिक साहित्य के गूढ़ अंशों को सरल रूप में समझाया गया है। | |||
**भारतीय ग्रन्थ | **भारतीय ग्रन्थ | ||
***ब्राह्मण धर्म से संबंधित ग्रंथ | ***ब्राह्मण धर्म से संबंधित ग्रंथ |