प्राचीन भारत का इतिहास: Difference between revisions

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यह सभी ग्रन्थ उत्तर-भारतीय इतिहास की रचना में सहायक हैं, जबकि दक्षिण भारतीय इतिहास की रचना में हमें सर्वाधिक सहायता तमिल तथा कन्नड़ साहित्य से मिलती है। पहली से चौथी श० ई० के बीच में पाण्ड्य-नरेशों ने एक संघ या परिषद का गठन किया था, जो सामूहिक रूप से तमिल भाषा में साहित्य की रचना करती थी। इसी कारण तमिल भाषा के इस साहित्य को संगम-साहित्य कहा जाता है। इसमें तोल्काप्पियम, दशग्राम्यगीत, अष्टसंग्रह और अष्टादशलघुगीत का नाम उल्लेखनीय है। इन तमिल रचनाओं से पाण्ड्य, चोल तथा चेर राजवंशों के इतिहास की जानकारी मिलती है। इनके अतिरिक्त शिल्पदिकारम्, मणिर्मकल्लै, जीवकचिंतामणि आदि दक्षिण भारतीय महाकाव्य भी संगम-साहित्य की कोटि में आते हैं। इसी प्रकार कुछ अन्य तमिल-ग्रन्थ, जिनकी रचना संगम-साहित्य के बाद हुई, वे भी दक्षिण भारतीय इतिहास के लेखन में सहायक है। इनमें चोलचरित, कलिंगत्तुपरणि तथा नन्दिक्कलम्बकम् का नाम उल्लेखनीय हैं। कन्नड़ साहित्य में कविराजमार्ग, विक्रमार्जुनविजय और गदायुद्ध नामक ग्रन्थ उल्लेखनीय हैं, जिनसे चालुक्य तथा राष्ट्रकूट राजवंश के इतिहास के लेखन में सहायता मिलती है।
यह सभी ग्रन्थ उत्तर-भारतीय इतिहास की रचना में सहायक हैं, जबकि दक्षिण भारतीय इतिहास की रचना में हमें सर्वाधिक सहायता तमिल तथा कन्नड़ साहित्य से मिलती है। पहली से चौथी श० ई० के बीच में पाण्ड्य-नरेशों ने एक संघ या परिषद का गठन किया था, जो सामूहिक रूप से तमिल भाषा में साहित्य की रचना करती थी। इसी कारण तमिल भाषा के इस साहित्य को संगम-साहित्य कहा जाता है। इसमें तोल्काप्पियम, दशग्राम्यगीत, अष्टसंग्रह और अष्टादशलघुगीत का नाम उल्लेखनीय है। इन तमिल रचनाओं से पाण्ड्य, चोल तथा चेर राजवंशों के इतिहास की जानकारी मिलती है। इनके अतिरिक्त शिल्पदिकारम्, मणिर्मकल्लै, जीवकचिंतामणि आदि दक्षिण भारतीय महाकाव्य भी संगम-साहित्य की कोटि में आते हैं। इसी प्रकार कुछ अन्य तमिल-ग्रन्थ, जिनकी रचना संगम-साहित्य के बाद हुई, वे भी दक्षिण भारतीय इतिहास के लेखन में सहायक है। इनमें चोलचरित, कलिंगत्तुपरणि तथा नन्दिक्कलम्बकम् का नाम उल्लेखनीय हैं। कन्नड़ साहित्य में कविराजमार्ग, विक्रमार्जुनविजय और गदायुद्ध नामक ग्रन्थ उल्लेखनीय हैं, जिनसे चालुक्य तथा राष्ट्रकूट राजवंश के इतिहास के लेखन में सहायता मिलती है।


====विदेशी यात्रियों के विवरण====
===विदेशी यात्रियों के विवरण===
प्राचीन भारतीय इतिहास के अध्ययन के स्रोत-रूप में विदेशी यात्रियों के विवरण अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं। भारतीय विद्वानों ने भारत के विषय में जो कुछ भी लिखा है, उसमें अपने आश्रयदाता की प्रशंसा, आत्मप्रशंसा तथा किस्से-कहानियों का अंश अधि क है। इसके अतिरिक्त भारतीयों के विवरण तिथिबद्ध एवं सही क्रम में भी नहीं हैं। अतः भारतीय लेखकों के इन विवरणों की प्रमाणिकता को सिद्ध करने के लिए समय-समय पर भारत आने वाले विदेशी यात्रियों के विवरणों का तुलनात्मक अध्ययन अनिवार्य है। यद्यपि इन विदेशी यात्रियों के विवरण भी कई बार सुनी-सुनाई बातों पर आधारित होने के कारण पूर्णतया विश्वसनीय नहीं हैं. तथापि बहुत सी बातें, जो उन्होंने अपने अनुभव के आधार पर अथवा प्रत्यक्ष देखकर लिखी हैं, वे प्राचीन भारतीय इतिहास के लेखन में अत्यन्त उपयोगी हैं।
प्राचीन भारतीय इतिहास के अध्ययन के स्रोत-रूप में विदेशी यात्रियों के विवरण अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं। भारतीय विद्वानों ने भारत के विषय में जो कुछ भी लिखा है, उसमें अपने आश्रयदाता की प्रशंसा, आत्मप्रशंसा तथा किस्से-कहानियों का अंश अधि क है। इसके अतिरिक्त भारतीयों के विवरण तिथिबद्ध एवं सही क्रम में भी नहीं हैं। अतः भारतीय लेखकों के इन विवरणों की प्रमाणिकता को सिद्ध करने के लिए समय-समय पर भारत आने वाले विदेशी यात्रियों के विवरणों का तुलनात्मक अध्ययन अनिवार्य है। यद्यपि इन विदेशी यात्रियों के विवरण भी कई बार सुनी-सुनाई बातों पर आधारित होने के कारण पूर्णतया विश्वसनीय नहीं हैं. तथापि बहुत सी बातें, जो उन्होंने अपने अनुभव के आधार पर अथवा प्रत्यक्ष देखकर लिखी हैं, वे प्राचीन भारतीय इतिहास के लेखन में अत्यन्त उपयोगी हैं।


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