प्राचीन भारत का इतिहास: Difference between revisions

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*'''ज्योतिष''' : ज्योतिष (गणित) में ब्रह्माण्ड, सौर मण्डल आदि का वर्णन है। प्राचीन ज्योतिषाचार्यो में लगध मुनि, आर्यभट्ट, वराह मिहिर आदि का नाम प्रमुख है।
*'''ज्योतिष''' : ज्योतिष (गणित) में ब्रह्माण्ड, सौर मण्डल आदि का वर्णन है। प्राचीन ज्योतिषाचार्यो में लगध मुनि, आर्यभट्ट, वराह मिहिर आदि का नाम प्रमुख है।


उपवेद
====उपवेद====
उपवेद चार हैं - आयुर्वेद, धनुर्वेद, गान्धर्ववेद तथा अर्थशास्त्र और इनमें भी अर्थशास्त्र की नीतिशास्त्र, शिल्पशास्त्र चतुष्षष्टिकलाशास्त्र, भौतिकशास्त्र आदि अनेक शाखाएँ हैं। इन सभी शाखाओं और उपशाखाओं में प्राचीन भारतीय ज्ञान का महासागर है, जो तत्कालीन राजनैतिक, सामाजिक, धार्मिक एवं सांस्कृतिक इतिहास के ज्ञान में हमारी सहायता करता है।
 
====षड्दर्शन====
छठी श० ई०पू० से तीसरी श० ई०पू० के मध्य गौतम, कणाद, कपिल, पतंजलि, जैमिनि तथा बादरायण जैसे आचार्यों ने क्रमशः न्याय, वैशेषिक, सांख्य योग, पूर्वमीमांसा तथा उत्तरमीमांसा नामक छः दर्शन-शास्त्रों की रचना की थी।
 
====स्मृति ग्रन्थ====
इन्हें धर्मशास्त्र भी कहा जाता है। इनमें मनुस्मृति तथा याज्ञवल्क्यस्मृति सर्वाधिक महत्वपूर्ण हैं। इनकी रचना दूसरी श० ई०पू० से लेकर दूसरी श० ई० के मध्य की गई थी। इनके अतिरिक्त अन्य स्मृति-ग्रन्थ हैं - विष्णुस्मृति, नारदस्मृति, पराशरस्मृति आदि, जिनका रचना-काल चौथी से छठी श० ई० के मध्य माना जाता है। वर्तमान भारतीय कानून का निर्माण इन्हीं स्मृति-ग्रन्थों के विवरणों के आधार पर किया गया है।


उपवेद चार हैं - आयुर्वेद, धनुर्वेद, गान्धर्ववेद तथा अर्थशास्त्र और इनमें भी अर्थशास्त्र की नीतिशास्त्र, शिल्पशास्त्र चतुष्षष्टिकलाशास्त्र, भौतिकशास्त्र आदि अनेक शाखाएँ हैं। इन सभी शाखाओं और उपशाखाओं में प्राचीन भारतीय ज्ञान का महासागर है, जो तत्कालीन राजनैतिक, सामाजिक, धार्मिक एवं सांस्कृतिक इतिहास के ज्ञान में हमारी सहायता करता है।
====महाकाव्य====
प्राचीन भारतीय इतिहास एवं संस्कृति के ज्ञान के स्रोत-रूप में रामायण एवं महाभारत नामक दो महाकाव्यों का स्थान भी अत्यन्त महत्वपूर्ण है। इनमें से वाल्मीकिकृत रामायण की रचना छठी श० ई०पू० में हुई मानी जाती है। यह ग्रन्थ दशरथ और कौशल्या के पुत्र राम के जीवन-चरित्र पर लिखा गया है। राजनैतिक दृष्टि से इससे केवल इतना ही ज्ञात होता है कि रामायण-काल में भारतवासियों का कोई युद्ध यवन एवं शक जातियों के साथ हुआ था, किन्तु तत्कालीन भारत की नैतिक, धार्मिक, सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति का अत्यन्त विस्तृत विवरण इस ग्रन्थ में देखने को मिलता है। इस ग्रन्थ में कुल सात काण्ड हैं, जिनमें से पहले तथा अन्तिम काण्ड के कुछ श्लोकों को प्रक्षिप्त माना जाता है। महर्षि व्यासकृत महाभारत की रचना पांचवी श० ई०पू० से चौथी श० ई० के बीच हुई मानी जाती है। इसमें कुल अट्ठारह पर्व तथा एक लाख श्लोक हैं। प्रारम्भ में इस ग्रन्थ का नाम जय था। बाद में भारत पड़ा और वर्तमान में यह महाभारत नाम से ज्ञात है। हरिवंश नाम से इसमें एक अतिरिक्त परिशिष्ट- पर्व भी है। मुख्य रूप से इस महाकाव्य का वर्ण्य विषय कौरव-पाण्डवों का युद्ध है, किन्तु साथ ही इसमें यूनानी, शक एवं पहलव नामक कुछ विदेशी जातियों का उल्लेख भी है। इसके अतिरिक्त इस महाकाव्य में विष्णु और शिव की उपासना विभिन्न स्थानों पर की गयी है और अनेक बार मन्दिरों एवं स्तूपों का उल्लेख भी हुआ है। संक्षेप में इस महाकाव्य से प्राचीन भारतीय राजनीति, धर्म एवं संस्कृति का व्यापक ज्ञान होता है।
 
====पुराण====
प्राचीन भारतीय इतिहास-लेखन के ब्राह्मण-धर्म-सम्बन्धी साहित्यिक स्रोतों में पुराणों का नाम सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। महापुराणों की संख्या अट्ठारह है और ये अट्ठारह महापुराण है मत्स्य वायु विष्णु ब्रह्माण्ड, भागवत, ब्रहा, पदम् नारदीय - मार्कण्डेय, अग्नि, भविष्य, ब्रह्मवैवर्त्त, लिंग, वराह, स्कन्द, वामन, कूर्म तथा गरूड़ । इनके अतिरिक्त साम्ब, आद्य, नारसिंह, कालिका आदि अनेकानेक अन्य उपपुराण भी हैं। इनमें से ऊपर दिये गए प्रथम पांच महापुराणों में विभिन्न प्राचीन भारतीय राजवंशों का विवरण उपलब्ध है, जो ऐतिहासिक दृष्टि से अत्यधिक महत्वपूर्ण है। पुराणों का रचना-काल मुख्यतः गुप्त-काल के आस-पास माना जाता है।
 
====बौद्ध-धर्म से संबंधित ग्रंथ====
बौद्ध-धर्म से संबंधित ग्रन्थ पालि तथा संस्कृत दो भाषाओं में मिलते है। इनमें प्राचीनतम तथा सर्वाधिक महत्वपूर्ण हैं: पालि भाषा में रचित त्रिपिटक । त्रिपिटक की रचना ई०पू० की पांचवीं से पहली शती के बीच हुई बतायी जाती है। यह तीन पिटक है सुत्तपिटक, विनयपिटक तथा अभिधम्मपिटक सुत्तपिटक में गौतम बुद्ध के धार्मिक उपदेशों का संग्रह है। इसमें पांच निकाय हैं दीघनिकाय, मज्झिमनिकाय, संयुक्तनिकाय, अंगुत्तरनिकाय तथा खुद्दकनिकाय विनयपिटक में बौद्ध-संघ से 1 संबंधित विधि-विधानों का संग्रह है इसके भी तीन खण्ड हैं- सुत्तविभंग, खंदक और परिवार । अभिधम्मपिटक में गौतमबुद्ध के धार्मिक सिद्धान्तों को प्रश्नोत्तर-शैली में विवेचित किया गया है। इसमें कथावत्थु धम्मसंगणि, विभंग, धातुकथा, पुग्गलपंजति आदि ग्रन्थ आते हैं। पालि भाषा में रचित अन्य बौद्ध-ग्रन्थों को अनुपिटक कहा जाता है। अनुपिटकों में प्राचीन भारतीय इतिहास-लेखन की दृष्टि से मिलिन्दपन्हो, दीपवंश तथा महावंश का नाम महत्वपूर्ण है तथा संस्कृत बौद्ध-ग्रन्थों में बुद्धचरित, ललितविस्तर, दिव्यावदान, महावस्तु सौरदानन्द आदि उल्लेखनीय हैं।
 
जैन धर्म से संबंधित ग्रंथ
 
जैन-धर्म से सम्बन्धित ग्रन्थ मुख्यतः दो प्रकार के हैं- पुराण तथा आगम। जैन पुराणों को प्रायः चरित भी कहा जाता है। इनमें पद्मपुराण, उत्तरपुराण, आदिपुराण, महापुराण महावीरचरित, आदिनाथचरित आदि का नाम प्राचीन भारतीय इतिहास के अययन की स्रोत सामग्री के रूप में उल्लेखनीय है। ये पुराण (चरित) प्राकृत, संस्कृत तथा अपभ्रंश भाषाओं में हैं। जैन आगमों के अन्तर्गत प्रायः बारह अंगों, बारह उपांगों, दस प्रकीर्णको छः छेदसूत्रों एक नन्दिसूत्र, एक अनुयोगद्वार और चार मूलसूत्रों की गणना
 
की जाती है। इनमें आचरंगसुत्त, सूयगदंगसुत्त, भगवतीसुत्त आदि का नाम महत्वपूर्ण है।
 
इन जैन पुराणों तथा आगमों के अतिरिक्त इन पर लिखी गयी नेमिचन्द्रसूरि, हरिभद्रसूरि
 
आदि जैन विद्वानों की टीकाएँ तथा हरिभद्रचरित, समराइच्चकहा, धूर्ताख्यान तथा
 
कुवलयमाला नामक जैन-ग्रन्थ भी प्राचीन भारतीय इतिहास एवं संस्कृति पर पर्याप्त
 
प्रकाश डालते हैं।


छटी श० ई०पू० से तीसरी श० ई०पू० के मध्य गौतम, कणाद, कपिल, पतंजलि, जैमिनि तथा बादरायण जैसे आचार्यों ने क्रमशः न्याय, वैशेषिक, सांख्य योग, पूर्वमीमांसा तथा उत्तरमीमांसा नामक छः दर्शन-शास्त्रों की रचना की थी।
समसामयिक ग्रंथ


स्मृति ग्रन्थ
प्राचीन भारतीय कवियों ने उपर्युक्त धार्मिक ग्रन्थों के अतिरिक्त अन्य अनेक ऐसे ग्रन्थों की भी रचना की थी, जो प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से समसामयिक इतिहास पर पर्याप्त प्रकाश डालते हैं। इनमें से कौटिल्य के अर्थशास्त्र, गार्गीसंहिता, कामन्दक के नीतिशास्त्र बार्हस्पत्य अर्थशास्त्र आदि को अर्ध-ऐतिहासिक तथा मुद्राराक्षस मालविकाग्निमित्र, हर्षचरित, गौडवहो, मंजुश्रीमूलकल्प, नवसाहसांकचरित, राजतरंगिणी, विक्रमांकदेवचरित, कुमारपालचरित प्रबंधचिंतामणि कीर्तिकौमुदी वसंतविलास, अवन्तिसुन्दरीकथा. पृथ्वीराजविजय, रामचरित, हम्मीरमहाकाव्य, चचनामा आदि को ऐतिहासिक ग्रन्थों की श्रेणी में रखा जा सकता है। इनमें से अर्ध- ऐतिहासिक ग्रन्थ तयुगीन राजनीति, शासन-व्यवस्था, धर्म, समाज एवं संस्कृति पर तथा ऐतिहासिक ग्रन्थ उस समय होने वाली ऐतिहासिक घटनाओं पर प्रकाश डालते हैं।


इन्हें धर्मशास्त्र भी कहा जाता है। इनमें मनुस्मृति तथा याज्ञवल्क्यस्मृति सर्वाधिक महत्वपूर्ण हैं। इनकी रचना दूसरी श० ई०पू० से लेकर दूसरी श० ई० के मध्य की गई थी। इनके अतिरिक्त अन्य स्मृति-ग्रन्थ हैं - विष्णुस्मृति, नारदस्मृति, पराशरस्मृति आदि, जिनका रचना-काल चौथी से छठी श० ई० के मध्य माना जाता है। वर्तमान
यह सभी ग्रन्थ उत्तर-भारतीय इतिहास की रचना में सहायक हैं, जबकि दक्षिण भारतीय इतिहास की रचना में हमें सर्वाधिक सहायता तमिल तथा कन्नड़ साहित्य से मिलती है। पहली से चौथी श० ई० के बीच में पाण्ड्य-नरेशों ने एक संघ या परिषद का गठन किया था, जो सामूहिक रूप से तमिल भाषा में साहित्य की रचना करती थी। इसी कारण तमिल भाषा के इस साहित्य को संगम-साहित्य कहा जाता है। इसमें तोल्काप्पियम, दशग्राम्यगीत, अष्टसंग्रह और अष्टादशलघुगीत का नाम उल्लेखनीय है। इन तमिल रचनाओं से पाण्ड्य, चोल तथा चेर राजवंशों के इतिहास


**भारतीय ग्रन्थ
**भारतीय ग्रन्थ

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