प्राचीन भारत का इतिहास: Difference between revisions

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देश में अशोक के अतिरिक्त अनेक शासकों अभिलेख प्राप्त है, जिनसे उनके व्यक्तिगत शासन एवं वंश की विविध जानकारी मिलती हैं, इनमें प्रमुख रूप से पुष्यमित्र शुंग का '''अयोध्या अभिलेख''', कलिंगराज खारखेल का '''हाथीगुम्फा अभिलेख''', गौतमी बलश्री का '''नासिक अभिलेख''', रूद्रदामा का '''गिरनार अभिलेख''', समुद्रगुप्त की '''‘प्रयाग -प्रशस्ति'''', चन्द्रगुप्त द्वितीय का '''महरौली स्तम्भ लेख''', स्कंद गुप्त का '''भितरी एवं जूनागढ़ लेख''', भोज-प्रतिहार की '''ग्वालियर प्रशस्ति''', हर्षवर्धन के '''मधुवन, बाँसखेड़ा एवं सोनीपत अभिलेख''', पुलकेशिन द्वितीय का '''ऐहोल अभिलेख''', बंगाल के पाल शासकों में धर्मपाल का '''खालिमपुर''' तथा देवपाल का '''मुंगेर अभिलेख''' तथा सेन शासक विजय सेन का '''देवपाड़ा अभिलेख''', परमार शासकों में भोज परमार (1010 - 1055 ई.) की ''''उदयपुर प्रशस्ति’''', राष्ट्रकूटों के बारे में गोविन्द तृतीय के '''राधनपुर''', वनिदिन्दोरी तथा अमोघवर्ष प्रथम के '''संजन दानपत्रों''' से विशेष जानकारी मिलती हैं।
देश में अशोक के अतिरिक्त अनेक शासकों अभिलेख प्राप्त है, जिनसे उनके व्यक्तिगत शासन एवं वंश की विविध जानकारी मिलती हैं, इनमें प्रमुख रूप से पुष्यमित्र शुंग का '''अयोध्या अभिलेख''', कलिंगराज खारखेल का '''हाथीगुम्फा अभिलेख''', गौतमी बलश्री का '''नासिक अभिलेख''', रूद्रदामा का '''गिरनार अभिलेख''', समुद्रगुप्त की '''‘प्रयाग -प्रशस्ति'''', चन्द्रगुप्त द्वितीय का '''महरौली स्तम्भ लेख''', स्कंद गुप्त का '''भितरी एवं जूनागढ़ लेख''', भोज-प्रतिहार की '''ग्वालियर प्रशस्ति''', हर्षवर्धन के '''मधुवन, बाँसखेड़ा एवं सोनीपत अभिलेख''', पुलकेशिन द्वितीय का '''ऐहोल अभिलेख''', बंगाल के पाल शासकों में धर्मपाल का '''खालिमपुर''' तथा देवपाल का '''मुंगेर अभिलेख''' तथा सेन शासक विजय सेन का '''देवपाड़ा अभिलेख''', परमार शासकों में भोज परमार (1010 - 1055 ई.) की ''''उदयपुर प्रशस्ति’''', राष्ट्रकूटों के बारे में गोविन्द तृतीय के '''राधनपुर''', वनिदिन्दोरी तथा अमोघवर्ष प्रथम के '''संजन दानपत्रों''' से विशेष जानकारी मिलती हैं।


===मुहरें एंव [[प्राचीन भारतीय इतिहास के स्त्रोत के रुप में सिक्कों का महत्त्व|सिक्के]]===
===<span style="color: #007500;text-decoration-line: underline;">मुहरें एंव सिक्के</span>===
इतिहास के स्त्रोत के रूप में [[प्राचीन भारतीय इतिहास के स्त्रोत के रुप में सिक्कों का महत्त्व|सिक्कों]] का अपना विशेष महत्त्व है। उत्तरपश्चिमी भारत के अनेक भागों पर द्वितीय शताब्दी ईसा पूर्व से हिन्द युनानीशासकों का राज्य रहा है। अन्य साक्ष्यों से केवल 3-4 शासकों के नाम की जानकारी मिलती है, परन्तु सिक्कों के मिलने से हमें लगभग 40 राजाओं, रानियों और राजकुमारों  इत्यादि के बारे में पता चलता है।  
इतिहास के स्त्रोत के रूप में [[प्राचीन भारतीय इतिहास के स्त्रोत के रुप में सिक्कों का महत्त्व|सिक्कों]] का अपना विशेष महत्त्व है। उत्तरपश्चिमी भारत के अनेक भागों पर द्वितीय शताब्दी ईसा पूर्व से हिन्द युनानीशासकों का राज्य रहा है। अन्य साक्ष्यों से केवल 3-4 शासकों के नाम की जानकारी मिलती है, परन्तु सिक्कों के मिलने से हमें लगभग 40 राजाओं, रानियों और राजकुमारों  इत्यादि के बारे में पता चलता है।  


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