प्राचीन भारत का इतिहास: Difference between revisions

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पुरातात्विक साक्ष्य कई रूपों में मिलते हैं जैसे- बर्तन, मूर्तियाँ, भवन, अभिलेख, हथियार और औजार आदि। इनसे सामान्य जन-जीवन के विविध पक्षों पर प्रकाश पड़ता है।  कभी-कभी इन साक्ष्यों से मनुष्यों की मान्यताओं और मूल्यों के विषय में भी अनुमान लगाया जा सकता है। पुरातात्विक साक्ष्यों को आगे निम्न श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है:  
पुरातात्विक साक्ष्य कई रूपों में मिलते हैं जैसे- बर्तन, मूर्तियाँ, भवन, अभिलेख, हथियार और औजार आदि। इनसे सामान्य जन-जीवन के विविध पक्षों पर प्रकाश पड़ता है।  कभी-कभी इन साक्ष्यों से मनुष्यों की मान्यताओं और मूल्यों के विषय में भी अनुमान लगाया जा सकता है। पुरातात्विक साक्ष्यों को आगे निम्न श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है:  


===<span style="color: #007500;text-decoration-line: overline;">पुरावशेष</span>===
===<span style="color: #007500;text-decoration-line: underline;">पुरावशेष</span>===
भारत में समय-समय पर होने वाले पुरातात्विक स्थलों के उत्खनन में प्रचुर संख्या में प्राचीन भारतीय संस्कृति के अवशेष प्राप्त हुए हैं। जैसे- मानव-मुण्ड, पाषाण-उपकरण, मृद्भाण्ड, लौह-उपकरण आदि। इनके सूक्ष्म अध्ययन से हमें अपनी प्रागैतिहासिक सभ्यता का ज्ञान होता है। बड़ी संख्या में ये उपकरण हड़प्पा, मोहनजोदड़ो, पाटलिपुत्र, वैशाली, नालंदा, अयोध्या, अतिरंजीखेड़ा, कौशाम्बी आदि स्थानों पर हुए उत्खननों में प्राप्त हुए हैं, जो तत्कालीन धर्म, सामाजिक जीवन, नगर-व्यवस्था आदि पर प्रकाश डालते हैं। पाटलिपुत्र से मिले चन्द्रगुप्त मौर्य के महल के लकड़ी के अवशेष इस तथ्य पर प्रकाश डालते हैं कि चन्द्रगुप्त मौर्य के समय तक भारतीय स्थापत्य में लकड़ी का अधिक प्रयोग होता था और प्रासाद आदि के निर्माण में बहुतायत से पाषाण का प्रयोग अशोक के काल से प्रारम्भ हुआ था।
भारत में समय-समय पर होने वाले पुरातात्विक स्थलों के उत्खनन में प्रचुर संख्या में प्राचीन भारतीय संस्कृति के अवशेष प्राप्त हुए हैं। जैसे- मानव-मुण्ड, पाषाण-उपकरण, मृद्भाण्ड, लौह-उपकरण आदि। इनके सूक्ष्म अध्ययन से हमें अपनी प्रागैतिहासिक सभ्यता का ज्ञान होता है। बड़ी संख्या में ये उपकरण हड़प्पा, मोहनजोदड़ो, पाटलिपुत्र, वैशाली, नालंदा, अयोध्या, अतिरंजीखेड़ा, कौशाम्बी आदि स्थानों पर हुए उत्खननों में प्राप्त हुए हैं, जो तत्कालीन धर्म, सामाजिक जीवन, नगर-व्यवस्था आदि पर प्रकाश डालते हैं। पाटलिपुत्र से मिले चन्द्रगुप्त मौर्य के महल के लकड़ी के अवशेष इस तथ्य पर प्रकाश डालते हैं कि चन्द्रगुप्त मौर्य के समय तक भारतीय स्थापत्य में लकड़ी का अधिक प्रयोग होता था और प्रासाद आदि के निर्माण में बहुतायत से पाषाण का प्रयोग अशोक के काल से प्रारम्भ हुआ था।


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