प्राचीन भारतीय इतिहास के स्त्रोत के रुप में सिक्कों का महत्त्व
भारतीय इतिहास के स्त्रोत के रुप में सिक्कों का अपना विशेष महत्त्व है। इनसे न केवल हमें राजनैतिक, सांस्कृतिक, आर्थिक, समाजिक, प्रशासनिक, धार्मिक इत्यादि जानकारी मिलती हैं अपितु कुछ काल तो ऐसे भी हैं जिनके बारे में जानने के साक्ष्य केवल सिक्के ही हैं। यह माना जाता है कि सिक्कों से केवल पूर्व विदित तथ्यों की प्रमाणिकता ही मिलती है परन्तु प्राचीन भारतीय इतिहास में ऐसा नहीं है। क्योंकि प्राचीन भारतीय इतिहास के कई काल ऐसे हैं जिन्हे पहले अन्धकारमयी युग (dark period) कहा जाता था, परन्तु अब सिक्कों इत्यादि की सहायता से हमें उन कालों के इतिहास का भी ज्ञान होता है। भारत के, विशेषकर उत्तरपश्चिमी भारत के अनेक भागों पर द्वितीय शताब्दी ईसा पूर्व से हिन्द युनानी शासकों का राज्य रहा है। अन्य साक्ष्यों से हमें केवल 3-4 राजाओं का ही नाम मिलता है, परन्तु सिक्कों के मिलने से हमें 40 के लगभग राजाओं, रानियों, राजकुमारों इत्यादि के होने का पता चलता है, जिन्होने एक के बाद एक या एक ही समय में अलग-2 क्षेत्रों पर राज्य किया। ये सभी राजा दो प्रमुख राजवंशों युथीडीमस तथा युक्रेटाइडस से सम्बन्धित थे। सिक्कों पर पाए गए नामों व चिन्हों (monograms) की सहायता से इन दोनों वंशों के राजाओं के अलग-2 कर कालक्रम के आधार पर रखा जा सकता है। हिन्द युनानी शासकों के बाद आए शक (Sakas) शासकों में ऐजिज (Azes) प्रथम तथा द्वितीय, ऐजीलिसस (Azilises) के राज्य काल तथा उनके राज्य विस्तार का हमें इनके सिक्कों से ही ज्ञान होता है। इसी तरह पहलव राजा गोण्डोफरनस के उत्तराधिकारियों के बारे में जानने का केवल साधन मुद्राएं ही है। प्रारम्भिक कुषाणों में कुजुल कैडफिसस, सोटरमैगस तथा कुछ हद तक विम कैडफिसस के शासन का पता हमें उनके द्वारा चलाए गए सिक्कों से लगता है। बाद के कुषाण राजाअेां के बारे में तथा किदार कुषाण इत्यादि राजवंशों का इतिहास सिक्कों के आधार पर ही बनाया गया है।
गुप्त काल के बारे में तो हमें बहुत से साहित्यिक एवं अन्य साक्ष्य मिलते हैं परन्तु इस राजवंश के भी कई ऐसे शासक हैं जिनका पता हमें केवल उनके सिक्कों द्वारा ही लगता है जैसे समुद्रगुप्त से पूर्व उसके बड़े भाई ने कुछ वर्षों तक राज्य किया जिसका नाम किसी गुप्त अभिलेख में नहीं है तथा न ही कोई अन्य साक्ष्य उस पर प्रकाश डालता है। काच नामक राजा के राज्य का पता हमें उसके चक्रध्वज प्रकार के सिक्कों से लगता है जिस पर काच नाम लिखा है। इसी प्रकार राम गुप्त की ऐतिहासिकता के प्रमाण भी हमें उसके चलाए सिक्कों से ही मिलते हैं। यदि यह सिक्के न होते हो देवी चन्द्रगुप्त में वर्णित गुप्त राजा रामगुपत, उसका शकांे से हारना, चन्द्रगुप्त द्वितीय द्वारा शक नरेश का वध इत्यादि महज कोरी कल्पनाए ही रह जाती। राजवंशों के अतिरिक्त भारत में बहुत से गणराज्य भी थे जिनमें यौधेय, कुणिन्द, औदुम्बर, शिबी, मालवा, काढ, क्षुद्रक, अग्र इत्यादि भी थे। इनमें से अधिकतर गणों का ज्ञान हमें उनके सिक्कों से ही होता है तथा इन्हीं से हमें उनके साम्राज्य क्षेत्रा इत्यादि का भी पता चलता है उनकी शासन पद्दति का ज्ञान धार्मिक आस्थाएं इत्यादि पर भी सिक्कों पर बने चिन्हों तथा तस्वीरों से पता चलता है।