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छठी शताब्दी ई०पू० में [[भारत]] में कोई एक सार्वभौम सत्ता नहीं थी और सम्पूर्ण राष्ट्र अनेक जनपदों में विभक्त था। ऋग्वैदिक विवरणों से ज्ञात होता है कि किसी एक [[पूर्वज]] से उत्पन्न विभिन्न कुटुम्बों के समूह को | छठी शताब्दी ई०पू० में [[भारत]] में कोई एक सार्वभौम सत्ता नहीं थी और सम्पूर्ण राष्ट्र अनेक जनपदों में विभक्त था। ऋग्वैदिक विवरणों से ज्ञात होता है कि किसी एक [[पूर्वज]] से उत्पन्न विभिन्न कुटुम्बों के समूह को जन कहते थे और इस प्रकार सभी आर्य अनेक जनों में विभक्त थे। वैदिक संहिताओं में कहीं पर भी [[जनपद]] शब्द का प्रयोग नहीं हुआ है। अतः विद्वानों का अनुमान है कि प्रारम्भ में ये जन खानाबदोश थे और एक स्थान से दूसरे स्थान पर घूमा करते थे किन्तु ब्राह्मण-ग्रन्थों में जनपद शब्द का प्रयोग मिलता है. अतः ऐसा प्रतीत होता है कि ब्राह्मण-काल तक आते-आते जनों ने अपने-अपने स्थायी राज्य स्थापित कर लिये थे और जो जन जिस प्रदेश में स्थायी रूप से रहने लगे थे, वही उनका जनपद कहलाने लगा था। प्रत्येक जनपद में बहुत से ग्राम और नगर होते थे। धीरे-धीरे ये छोटे-छोटे जनपद (राज्य) आपस में जुड़ने लगे और इस प्रकार देश में महाजनपदों का उदय हुआ। [[महात्मा बुद्ध]] के जन्म से पूर्व सम्पूर्ण उत्तर भारत 16 महाजनपदों में विभक्त था। इनमें से वज्जि और मल्ल में गणतंत्रात्मक तथा अन्य सभी में राजतंत्रात्मक शासन प्रणाली थी। इनके अतिरिक्त गंगाघाटी में दस गणराज्य भी थे। | ||
==षोडश महाजनपद== | ==षोडश महाजनपद== |