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तिथि: Difference between revisions

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(Created page with "चन्द्रमा की एक कला को तिथि माना गया है। इसका चन्द्र और सूर्य के अन्तरांशों पर से मान निकाला जाता है। प्रतिदिन १२ अंशों का अन्तर सूर्य और चन्द्रमा के भ्रमण में होता है, यही अन्तराश का...")
 
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!तिथि  
!तिथि  
!स्वामी
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|प्रतिपदा  
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|अग्नि
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|द्वितीया  
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|ब्रह्मा
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|तृतीया  
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|गौरी
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|चतुर्थी  
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|गणेश
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|पंचमी  
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|शेषनाग
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|षष्ठी
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|कार्तिकेय
|कार्तिकेय
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|सप्तमी
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|सूर्य
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|अष्टमी  
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|शिव
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|नवमी  
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|दुर्गा
|दुर्गा
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|दशमी  
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|काल
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|एकादशी  
|एकादशी  
|विश्वदेव
|विश्वदेव
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|द्वादशी  
|द्वादशी  
|विष्णु
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|त्रयोदशी  
|त्रयोदशी  
|काम
|काम
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|चतुर्दशी
|चतुर्दशी
|शिव
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|पौर्णमासी  
|पौर्णमासी  
|चन्द्रमा
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|अमावस्या  
|अमावस्या  
|पितर  
|पितर  
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Revision as of 09:04, 29 January 2023

चन्द्रमा की एक कला को तिथि माना गया है। इसका चन्द्र और सूर्य के अन्तरांशों पर से मान निकाला जाता है। प्रतिदिन १२ अंशों का अन्तर सूर्य और चन्द्रमा के भ्रमण में होता है, यही अन्तराश का मध्यम मान है। अमावस्या के बाद प्रतिपदा से लेकर पूर्णिमा तक की तिथियाँ शुक्लपक्ष की और पूर्णिमा के बाद प्रतिपदा से लेकर अमावस्या तक की तिथियाँ कृष्णपक्ष की होती हैं। ज्योतिषशास्त्र में तिथियों की गणना शुक्लपक्ष की प्रतिपदा से आरम्भ होती है। तिथियों के शुभाशुभत्व के अवसर पर स्वामियों का विचार किया जाता है।

तिथियों के स्वामी- प्रतिपदा का स्वामी अग्नि, द्वितीया का ब्रह्मा, तृतीया की गौरी, चतुर्थी का गणेश, पंचमी का शेषनाग, षष्ठी का कार्तिकेय, सप्तमी का सूर्य, अष्टमी का शिव, नवमी की दुर्गा, दशमी का काल, एकादशी के विश्वदेव, द्वादशी का विष्णु, त्रयोदशी का काम, चतुर्दशी का शिव, पौर्णमासी का चन्द्रमा और अमावस्या के पितर हैं। तिथियों के शुभाशुभत्व के अवसर पर स्वामियों का विचार किया जाता है

तिथि स्वामी
प्रतिपदा अग्नि
द्वितीया ब्रह्मा
तृतीया गौरी
चतुर्थी गणेश
पंचमी शेषनाग
षष्ठी कार्तिकेय
सप्तमी सूर्य
अष्टमी शिव
नवमी दुर्गा
दशमी काल
एकादशी विश्वदेव
द्वादशी विष्णु
त्रयोदशी काम
चतुर्दशी शिव
पौर्णमासी चन्द्रमा
अमावस्या पितर