रेडियोधर्मिता: Difference between revisions
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रेडियोधर्मिता की खोज करने के लिए पेरिस में जन्मे '''[[हेनरी बेकेरल]]''' को 1903 में मेरी और पियरे क्यूरी के साथ भौतिकी के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।<br /><br /> | रेडियोधर्मिता की खोज करने के लिए पेरिस में जन्मे '''[[हेनरी बेकेरल]]''' को 1903 में मेरी और पियरे क्यूरी के साथ भौतिकी के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।<br /><br /> | ||
1896 में आज ही के दिन वैज्ञानिक हेनरी बेकेरल के प्रयोग से रेडियोएक्टिविटी का पता चला। उन्होंने फोटोग्राफिक प्लेट को काले कागज में लपेटा और अंधेरे में चमकने वाले फॉस्फोरेसेंट सॉल्ट को उस पर डाला। फिर यूरेनियम सॉल्ट का इस्तेमाल करते ही प्लेट काली होने लगी। इन रेडिएशन को बेकेरल किरणें कहा गया। स्पष्ट था कि प्लेट का काला होना फॉस्फोरेसेंट से नहीं जुड़ा है क्योंकि प्लेट अंधेरे में रखे होने के बाद भी काली हुई। अनुमान था कि किसी तरह का रेडिएशन है जो कागज पार कर सकता है व प्लेट काली कर सकता है। बेकेरल ने प्लेट्स डेवलप की और पाया कि तस्वीरें साफ हैं। इससे पता चला कि बिना बाहरी ऊर्जा के यूरेनियम ने रेडिएशन छोड़ा। यही रेडियोधर्मिता की पहली जानकारी थी। | [[1 मार्च]] 1896 में आज ही के दिन वैज्ञानिक हेनरी बेकेरल के प्रयोग से रेडियोएक्टिविटी का पता चला। उन्होंने फोटोग्राफिक प्लेट को काले कागज में लपेटा और अंधेरे में चमकने वाले फॉस्फोरेसेंट सॉल्ट को उस पर डाला। फिर यूरेनियम सॉल्ट का इस्तेमाल करते ही प्लेट काली होने लगी। इन रेडिएशन को बेकेरल किरणें कहा गया। स्पष्ट था कि प्लेट का काला होना फॉस्फोरेसेंट से नहीं जुड़ा है क्योंकि प्लेट अंधेरे में रखे होने के बाद भी काली हुई। अनुमान था कि किसी तरह का रेडिएशन है जो कागज पार कर सकता है व प्लेट काली कर सकता है। बेकेरल ने प्लेट्स डेवलप की और पाया कि तस्वीरें साफ हैं। इससे पता चला कि बिना बाहरी ऊर्जा के यूरेनियम ने रेडिएशन छोड़ा। यही रेडियोधर्मिता की पहली जानकारी थी। |
Revision as of 19:59, 28 February 2023
रेडियोधर्मिता की खोज करने के लिए पेरिस में जन्मे हेनरी बेकेरल को 1903 में मेरी और पियरे क्यूरी के साथ भौतिकी के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
1 मार्च 1896 में आज ही के दिन वैज्ञानिक हेनरी बेकेरल के प्रयोग से रेडियोएक्टिविटी का पता चला। उन्होंने फोटोग्राफिक प्लेट को काले कागज में लपेटा और अंधेरे में चमकने वाले फॉस्फोरेसेंट सॉल्ट को उस पर डाला। फिर यूरेनियम सॉल्ट का इस्तेमाल करते ही प्लेट काली होने लगी। इन रेडिएशन को बेकेरल किरणें कहा गया। स्पष्ट था कि प्लेट का काला होना फॉस्फोरेसेंट से नहीं जुड़ा है क्योंकि प्लेट अंधेरे में रखे होने के बाद भी काली हुई। अनुमान था कि किसी तरह का रेडिएशन है जो कागज पार कर सकता है व प्लेट काली कर सकता है। बेकेरल ने प्लेट्स डेवलप की और पाया कि तस्वीरें साफ हैं। इससे पता चला कि बिना बाहरी ऊर्जा के यूरेनियम ने रेडिएशन छोड़ा। यही रेडियोधर्मिता की पहली जानकारी थी।