प्राचीन भारत का इतिहास: Difference between revisions

From Indian Trends
Jump to navigation Jump to search
m ()
mNo edit summary
Line 15: Line 15:
पुरातात्विक साक्ष्य कई रूपों में मिलते हैं जैसे- वर्तन, मूर्तियाँ, भवन, अभिलेख, हथियार और औजार आदि। इनसे सामान्य जन-जीवन के विविध पक्षों पर प्रकाश पड़ता है। ये साक्ष्य इस दृष्टिकोण से साहित्यिक साक्ष्यों की तुलना में अधिक महत्त्वपूर्ण होते हैं कि इनमें किसी प्रकार का अतिश्योक्ति वर्णन नहीं होता, जो कि साहित्यिक कृतियों की ऐतिहासिकता में विशेष वाधा के रूप में दिखाई पड़ता है। कभी-कभी इन साक्ष्यों से मनुष्यों की मान्यताओं और मूल्यों के विषय में भी अनुमान लगाया जा सकता है। पुरातात्विक साक्ष्यों को आगे निम्न श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है:  
पुरातात्विक साक्ष्य कई रूपों में मिलते हैं जैसे- वर्तन, मूर्तियाँ, भवन, अभिलेख, हथियार और औजार आदि। इनसे सामान्य जन-जीवन के विविध पक्षों पर प्रकाश पड़ता है। ये साक्ष्य इस दृष्टिकोण से साहित्यिक साक्ष्यों की तुलना में अधिक महत्त्वपूर्ण होते हैं कि इनमें किसी प्रकार का अतिश्योक्ति वर्णन नहीं होता, जो कि साहित्यिक कृतियों की ऐतिहासिकता में विशेष वाधा के रूप में दिखाई पड़ता है। कभी-कभी इन साक्ष्यों से मनुष्यों की मान्यताओं और मूल्यों के विषय में भी अनुमान लगाया जा सकता है। पुरातात्विक साक्ष्यों को आगे निम्न श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है:  


===अवशेष तथा अभिलेख===  
===आभिलेखिक साक्ष्य===  
 
 
===स्मारक तथा खंडहर===
===स्मारक तथा खंडहर===
===सिक्के तथा मूर्तियाँ===
===सिक्के तथा मूर्तियाँ===

Revision as of 15:05, 11 February 2023

भारत के प्राचीन ग्रन्थों में बहुमूल्य ऐतिहासिक सामग्री निहित है जिसे विविध रूपों में प्राप्त किया जा सकता है। ये साक्ष्य विविध रूपों में होते हैं— यथा, साहित्यिक रचनायें अथवा दस्तावेज, स्मारक, सिक्के, लेख इत्यादि ।

प्राचीन भारतीय इतिहास के स्रोतों का वर्गीकरण

प्राचीन भारतीय इतिहास के स्रोतों को मुख्य रूप से निम्न वर्गों के अन्तर्गत विभक्त किया जा सकता है-:

  • पुरातात्विक साक्ष्य
  • साहित्यिक साक्ष्य
  • विदेशी विवरण

पुरातात्विक साक्ष्य

प्राचीन भारतीय इतिहास के ऐसे कई युग हैं जिनके विषय में हमें मुख्य रूप से पुरातात्विक उत्खननों से प्राप्त सूचनाओं से जानकारी मिलती है। भारत के प्रागैतिहासिक काल के विषय में हमारी सम्पूर्ण जानकारी पुरातात्विक साक्ष्य पर ही आधारित है। भारतीय सभ्यता के प्रथम चरण सैन्धव सभ्यता के विषय में हम कुछ भी नहीं जान पाते, यदि इसके विषय में हमें पुरातात्विक साक्ष्य से सहायता नहीं मिलती ।

ऐतिहासिक काल में भी कई स्थानों के पुरातात्विक उत्खननों से हमें ऐसी महत्त्वपूर्ण सूचनायें मिलती हैं जिनके विषय में अन्यथा हम कभी नहीं जान पाते। शिशुपालगढ़, राजगृह, अरिकामेडू इत्यादि ऐतिहासिक युग के स्थानों पर उत्खनन कार्यों से हमें तत्कालीन युग के विषय में बड़ी ही महत्त्वपूर्ण सूचनायें मिली हैं।

पुरातात्विक साक्ष्य कई रूपों में मिलते हैं जैसे- वर्तन, मूर्तियाँ, भवन, अभिलेख, हथियार और औजार आदि। इनसे सामान्य जन-जीवन के विविध पक्षों पर प्रकाश पड़ता है। ये साक्ष्य इस दृष्टिकोण से साहित्यिक साक्ष्यों की तुलना में अधिक महत्त्वपूर्ण होते हैं कि इनमें किसी प्रकार का अतिश्योक्ति वर्णन नहीं होता, जो कि साहित्यिक कृतियों की ऐतिहासिकता में विशेष वाधा के रूप में दिखाई पड़ता है। कभी-कभी इन साक्ष्यों से मनुष्यों की मान्यताओं और मूल्यों के विषय में भी अनुमान लगाया जा सकता है। पुरातात्विक साक्ष्यों को आगे निम्न श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है:

आभिलेखिक साक्ष्य

स्मारक तथा खंडहर

सिक्के तथा मूर्तियाँ

साहित्यिक साक्ष्य

विदेशी विवरण